एक दिसंबर से कितना महंगा होने जा रहा है मोबाइल इंटरनेट और क्यों?

भारत ऐसा देश है जहां पर मोबाइल डाटा की दरें दुनिया में सबसे कम हैं। यहां पर चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से भी सस्ता मोबाइल डाटा मिलता है। लेकिन आने वाले समय में भारतीय ग्राहकों को इसी डाटा के लिए ज्यादा रकम चुकानी पड़ सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि एयरटेल, जियो, वोडाफोन-आइडिया और बीएसएनएल ने जल्द ही मोबाइल डाटा का दाम बढ़ाने की घोषणा की है। भारतीय बाजार में एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया की राजस्व के मामले में आधे से ज्यादा हिस्सेदारी है। हाल ही में दोनों कंपनियों ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 10 अरब डॉलर का घाटा दिखाया है। ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने मामले को निपटाते हुए हाल ही में आदेश दिया है कि सभी टेलीकॉम कंपनियों को 90,000 करोड़ रुपए की रकम सरकार को देनी होगी। इसी के बाद वोडाफोन ने हाल ही में बयान जारी किया है, "मोबाइल डाटा आधारित सेवाओं की तेजी से बढ़ती मांग के बावजूद भारत में मोबाइल डाटा के दाम दुनिया में सबसे कम हैं। वोडाफोन आइडिया 1 दिसंबर 2019 से अपने टैरिफ की दरें उपयुक्त ढंग से बढ़ाएगा ताकि इसके ग्राहक विश्वस्तरीय डिजिटल अनुभव लेते रहें।"एयरटेल की ओर से भी इसी तरह का बयान जारी किया गया है। नई दरें क्या होंगी, इस बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। जियो और भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने भी इसी तरह की घोषणा की है। कंपनियां क्यों डाटा का दाम बढ़ा रही हैं, किस हद तक यह कीमत बढ़ेगी और आम आदमी पर इसका कितना फर्क पड़ेगा? 


क्यों बढ़ेंगे दाम
पहले टेलीकॉम सेक्टर में कई कंपनियां थीं और उनमें प्रतियोगिता के कारण डाटा की कीमतें गिरी थीं। ये कीमतें इसलिए भी गिरी थीं क्योंकि दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में भारत में ग्राहकों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही थी। भारत में 22 टेलीकॉम सर्कल हैं और उनमें तीन कैटिगरीज हैं- A, B और C। इनमें C कैटिगरी के सर्कल्स (जैसे कि ओडिशा) में जियो, एयरटेल व दूसरी कंपनियां नए ग्राहक बनाना चाहती थीं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां के ग्राहक हर महीने डाटा पर बेशक कम रकम खर्च करते हैं लेकिन इनकी संख्या इतनी है कि आपकी कुल कमाई अच्छी हो जाती है। इसी कारण वे कुछ समय के लिए नुकसान सहकर भी ग्राहकों को आकर्षित करना चाह रही थी। वह दौर अब खत्म हो गया है। साथ ही कंपनियां भी कम बची हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि डाटा की कीमत बढ़ेगी।


कितनी बढ़ोतरी होगी
एकदम बहुत बढ़ोतरी बड़ी नहीं होगी क्योंकि कंपनियां एकदम से 15-20 प्रतिशत दाम नहीं बढ़ा सकतीं। इसलिए हर कंपनी अपने हिसाब से योजना बनाएगी कि और देखेगी कि किस सेगमेंट से कितना राजस्व बढ़ना है। दरअसल कंपनियां 'एवरेज रेवेन्यू पर यूज़र' यानी प्रति व्यक्ति होने वाली कमाई को देखती है। अभी भारत में यह हर महीने लगभग 150 रुपए से कुछ कम है। आम भाषा में ऐसे समझें कि एक आम व्यक्ति हर महीने 150 रुपए खर्च कर रहा है।तो कंपनियां ऐसी योजना ला सकती है कि अभी आप महीने में 100 रुपए का प्लान ले रहे हैं तो 120 रुपए का प्लान लीजिए, हम आपको 100 रुपए वाले प्लान से दोगुना डाटा देंगे। इससे कंपनियां की 20 फीसदी कमाई तो बढ़ जाएगी लेकिन उनका डाटा का खर्च उतना नहीं बढ़ेगी कि परेशानी होने लगे। फिर भी, कंपनियां को अगर राजस्व बढ़ाना है तो ऐसा तभी हो सकता है जब वे मोटा खर्च करने वाले ग्राहकों से और पैसा खर्च करवाएंगी।


एजीआर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल के घाटा दिखाने के साथ-साथ हाल ही में लाइसेंस फीस से जुड़े विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। मामला है एजीआर यानी अडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू का। यह 15 साल पुराना केस है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का अभी फैसला आया है। जब मोबाइल सर्विस शुरू हुई थी, तो ऑपरेटरों से सरकार फिक्स्ड लाइसेंस फीस लेती थी। यानी आपके 100 ग्राहक हों या लाखों, आपको इसके एवज में निश्चित रकम देनी है।


अगस्त 1999 में नई पॉलिसी आई जिसके मुताबिक ऑपरेटरों को सरकार के साथ रेवेन्यू शेयर करना होगा। यानी आपको 100 रुपए की कमाई में से भी निश्चित प्रतिशत सरकार को देना होगा और हजारों-करोड़ की कमाई में से भी। इससे सरकार की कमाई भी बढ़ गई क्योंकि टेलीकॉम कंपनियां भी बढ़ गईं और उनके ग्राहक बढ़ने से सरकार को भी फायदा हुआ। लेकिन एजीआर का झगड़ा ये है कि इसमें किस-किस चीज को शामिल किया जाए।अब यह टेलीकॉम कंपनियों की किस्मत खराब है कि इसी दौर में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ आया है और उन्हें भारी-भरकम लंबित रक़म सरकार को चुकानी होगी। अब इसका समाधान यह हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार ही नया क़ानून लाकर बदलकर कंपनियों को राहत दे या फिर डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकॉम कहे कि हम आपके यह रकम एकमुश्त नहीं लेंगे, आप धीरे-धीरे एक निश्चित अवधि में दे दीजिए।


दाम बढ़ाने से डर क्यों नहीं
प्रश्न यह उठता है कि जब कोई कंपनी डाटा को महंगा करेगी तो क्या उसके ग्राहक अन्य कंपनियों के पास नहीं चले जाएंगे? मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) अधिक सफल नहीं हुआ है। फिर बात आती है विकल्पों की। बीएसएनएल को भी मिला दिया जाए तो भारत में चार ही टेलीकॉम ऑपरेटर हैं। यानी ग्राहकों के पास बहुत विकल्प नहीं हैं। अगर आज की तुलना 2008-10 से करें तो तब देश में 13 टेलीकॉम ऑपरेटर थे। अब स्थिति उल्टी हो गई है। पहले प्राइसिंग पावर यानी मूल्य तय करने की ताक़त कंपनियों के पास नहीं थी। उस समय ग्राहकों के पास विकल्प बहुत थे। इसीलिए प्रतियोगिता के कारण कंपनियां मूल्य बढ़ाने से पहले सोचती थीं। लेकिन अब कम ऑपरेटर रह जाने के कारण प्राइसिंग पावर कंपनियों के पास आ गई हैं।


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