महाकाल: भगवान की शीतलता के लिए बांधी मिट्टी के कलश की गलंतिका

 उज्जैन । महाकाल: भगवान की शीतलता के लिए बांधी मिट्टी के कलश की गलंतिका


, दो माह तक लगातार गिरेगी ठंडे जल की धारा विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दो माह तक ठंडे जल की धारा से महाकाल भगवान का अभिषेक होगा। मिट्टी के 11 कलशों की गलंतिका ज्योतिर्लिंग के ऊपर बांधी गई है। वैशाख और ज्येष्ठ मास की गर्मी के चलते हर साल यह किया जाता है। 

वैशाख और ज्येष्ठ मास की गर्मी के चलते महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर मिट्टी के कलशों से जलधारा प्रवाहित होगी। रविवार को वैशाख मास आरंभ होते ही मिट्टी की गलंतिका (कलश) बांधी गई हैं, जो दो माह तक रहेगी। इनसे प्रतिदिन सुबह 6 से शाम 4 बजे तक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर ठंडे जल की धारा प्रवाहित होगी।दरअसल मंदिर की परंपरा के अनुसार वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तक दो माह गलंतिका बांधी जाती है। पुजारियों के अनुसार वैशाख व ज्येष्ठ मास में अत्यधिक गर्मी होती है। भीषण गर्मी में भगवान महाकाल को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलशों से जलधारा प्रवाहित की जाती है। दो माह तक प्रतिदिन सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक गलंतिका बंधेगी। पुजारी प्रदीप गुरु के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने गरल (विष) पान किया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार गरल अग्निशमन के लिए ही शिव का जलाभिषेक किया जाता है। गर्मी के दिनों में विष की उष्णता (गर्मी) और भी बढ़ जाती है। इसलिए वैशाख व ज्येष्ठ मास में भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलश से ठंडे पानी की जलधारा प्रवाहित की जाती है।भगवान के शीश के ऊपर मिट्टी के कलश बांधने को गलंतिका कहते हैं। महाकाल मंदिर की परंपरा अनुसार वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक दो माह सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक गलंतिका बांधी जाती है। इसमें 11 मिट्टी के कलश होते हैं। इसी तरह  मंगलनाथ व अंगारेश्वर महादेव मंदिर में भी वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से गलंतिका बांधी जाएगी। भूमिपुत्र मंगल को अंगारकाय कहा जाता है, अर्थात महामंगल अंगारे के समान काया वाले माने गए हैं। मंगल की प्रकृति गर्म होने से गर्मी के दिनों में अंगारक देव को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलश से जल अर्पण किया जाएगा।